लड़की ...
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लड़की ...
संभाले दुपट्टा यौवन का,
जाने डूबी किस दुःख में,
कितनी टूटी,
वो कौन झुकाए सिर अपना चुपचाप,
आवारा सड़कों पर बही जा रही है ?
डालो निगाहें गिद्धों सी,
ज़ोर की सीटी बजे,
कसो फब्तियां खुलकर,
वो देखो लड़की चली जा रही है ।
~ हर्षवर्धन रॉय 'वैदेही'
Labels: कविताएँ (Poems)


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