हिंदी और अज्ञानता - हिंदी दिवस विशेष
यह कैसी सभ्यता पनप गयी है जहाँ हम कुछ "न आने का अभिनय" करके अपने आप को ज्ञानी कहलवाने का दंभ भरते हैं ? बात उन अभिनयखोरों की कर रहा हूँ जो हिंदी का ज्ञान शुन्य दिखाकर अपने आप को आधुनिकता का पर्याय बताना चाहते हैं । अगर दुकानदार छियासठ रुपैये की मांग करता है तो शक्ल बनाकर sixty -six rupees ऐसे पूछते हैं जैसे कुछ पता ही न हो । मुझे उन माँ-बाप पर भी दया आती है जो भाषा की खिचड़ी अपने बच्चों को पिलाते हैं जिससे बस अधुरा ज्ञान ही प्राप्त होता है । अगर एक पांच साल की बच्ची मुझसे फ़ोन से बातें करते हुए ये कहती है की घर में मम्मी ने आज fish बनाया है तो मुझे उस मछली के स्वाद पर तरस आता है (और बात यहाँ HINGLISH की नहीं है ... बच्ची को शायद ये कभी ज्ञात ही नहीं होगा की उसे मछली भी कहा जाता है) । अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा का प्रयोग से मुझे आपत्ति नहीं है लेकिन उसके मद में हिंदी की अपेक्षा मुझे नागवार गुजरती है ।
और आज फिर से मैं 'dislike button' ढून्ढ रहा हूँ जिससे उन 'post' की भर्त्सना करूं जो हिंदी दिवस की औपचारिक शुभकामना परोस रहा है ।
और आज फिर से मैं 'dislike button' ढून्ढ रहा हूँ जिससे उन 'post' की भर्त्सना करूं जो हिंदी दिवस की औपचारिक शुभकामना परोस रहा है ।
Labels: समाज (Society)

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