Friday, April 18, 2014

बेचारा मुस्सद्दीलाल !

ऑफिस ऑफिस !


मार्च - यह कहकर लौटाते रहे की फाइनेंसियल इयर का क्लोजिंग है, काम का प्रेशर है, अलाना है फलाना है - अरे भाई, परीक्षा के दिन उसी छात्र का किताब खुलता है जिसने साल भर पढ़ा न हो | तुम करमघट्टूओं का पूरा बहीखाता इसी माह खुलता है क्या ?

अप्रैल - बड़ा बाबु यह कहकर मुह बाए रहेंगे कि इलेक्शन को लेकर आधा ऑफिस खाली है - अरे भाई, यही तो मौका का घूस का रकम अकेले हजम करने का | निठ्ठले तो तुम उस वक़्त भी ठहरे जब पूरा दफ्तर भरा हो |

मई - 'दो महिना से काम रुका हुआ था, इसलिए 'पेंडिंग' काम का प्रेशर फिर से है' | मतलब हम आप खेलते रहिए ऑफिस-ऑफिस !




सन्दर्भ : मार्च के बाद अप्रैल महीने में चुनाव 

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Saturday, June 22, 2013

आयुर्वेद का तमाशा

अवधारणा है कि यदि गंगाजल मैं पानी मिलाया जाए तो वह भी पानी हो जाता है, और इसके विपरीत अगर पानी में गंगाजल मिलाया जाए तो वह भी गंगाजल के समान ही है । ऐसी ही आध्यामिकता शायद सौन्दर्य प्रसाधन के बनियों ने भी अपनाया है जो पूरी तरह रासायनिक उत्पाद में एक रत्ती नीम या नीबू मिलाकर उसे पूर्ण रूप से 'हर्बल' घोषित कर देते है । और यह गोरखधंधा सभी बड़े उत्पादकों का है - चाहे वो हिमालया हो या बाबा रामदेव या कोई और। सामान्य ज्ञान भी यही कहता है कि जिसकी मात्रा ज्यादा हो तो गुण या नाम उसके ही माने जायेंगे । एक तसली पानी में एक बूँद दूध मिला देने से वह दूध नहीं हो जाता। 

आयुर्वेद और 'हर्बल' शब्द अब बाजारी नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है ।

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आडवाणी जी की पद लोलुपता

मुझे अडवानी जी को भीष्म कहे जाने पर आपत्ति है । सत्ता-लोलुप और महत्वकांक्षी ध्रितराष्ट्र हुए थे, परन्तु वह भी अगाध पुत्र मोह में। दुर्योधन अड़ियल तथा हठी अवश्य था, परन्तु पराक्रमी भी । दुह्शासन भी आखिर शकुनि की सुनता था । कर्ण की संज्ञा भी व्यर्थ है क्युकी वह कुर्सी भी दान कर सकता था । अश्वत्थामा कि तरह चिरंजीवी भी नहीं जो 85 कि उम्र में प्रधानमंत्री का दुह्स्वप्न देखे । 

कुल मिलाकर भाजपा एक महाभारत जरूर है, परन्तु अडवानी का पात्र शिवपुराण से उद्धवित है जिसमे भस्मासुर नाम का एक दैत्य था । 

आप कृपया अपना इस्तीफ़ा वापस न ले। सन्यास आप 2009 में भी ले चुके थे - इसलिए डर लगता है |

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Intellectual और Secular

कुछ शब्दों की उत्पत्ति और उनका आगे का प्रयोग तो सकारात्मक प्रयोजन के तहत हुआ था, परन्तु शनैः शनैः उनके अर्थ बदलने लग गए और कुछ हद तक नकाराक्त्मक बन गए । अधिकारिक तौर पर उनका अर्थ आज भी सकारात्मक है, परन्तु प्रयोग इसके विपरीत है ।

उदाहरण तौर पर 'लाट साहब' और 'lecture' । मैने आज तक किसी सज्जन को स्पष्ट तौर पर 'लाट साहब' कहलाते नहीं सुना । "ये है न लाट साहब हमारे" और दर्जनों कई ऐसे ताने मारे जाने वाले वाक्य है जो लाट साहब मूलार्थ के लगभग विपरीत है । 'लेक्चर' शब्द भी लेक्चरबाजी और घुड़कियों तक सिमट कर रह गया है, जैसे 'अब ज्यादा लेक्चर मत झाड़ो', 'छोटी सी बात पर इतना लम्बा लेक्चर पिला दिया' इत्यादि ।

उपरोक्त भूमिका सिर्फ दो शब्द के परिचय मात्र के लिए लिखी गयी है जिन्होंने हाल में हि अपनी प्रविष्टि दर्ज करायी है - 'intellectual' और 'secularism' ! फेसबुक के विभिन्न चर्चाओं और मुद्दों पर हो रही चिल्लपों को देखकर intellectual शब्द अब मज़ाक सा लगता है और secularist गाली।

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उत्तराखंड बाढ़, २०१३

अभी अगर अकस्मात् निगमानंद सरस्वती की बात करूं तो शायद कईयों को तर्कसंगत न लगे । ज्ञातव्य हो की यह वही निगमानंद सरस्वती (असली नाम स्वरूपम कुमार झा 'गिरीश') हैं जिन्होंने गंगा की लहरों का भान था और आमरण अनशन पर गए थे (कृपया इसे सीमित दिन के उपवास न पढ़े जो पिछले दो-तीन सालों से 'आमरण अनशन' के नाम पर होता रहा है ) । अवैध खनन, बालू माफिया, टिम्बर माफिया इत्यादि जो गंगा तथा इसके गर्भ-तट को क्षत-विक्षत करने पर लगे हुए थे, उनके खिलाफ नारा बुलंद किया था । यह भी बतलाता चलूँ कि यह फिर से वही निगमानंद हैं जिनकी (एक षड़यंत्र के तहत) उसी अस्पताल में मौत हुई जहाँ बाबा रामदेव का रामलीला प्रकरण के बाद इलाज चल रहा था । चूँकि उस वक़्त समस्त देश का ध्यान किसी और मुद्दे पर टिका था, निगमानंद का देहावसान एक गौण तथा अमुख्य घटना बन कर रह गयी और न ही बाद में किसी ने सूध ली । हालाँकि औपचारिक तौर पर कुछ अवैध खनन पर लगाम अवश्य लगाया गया । परन्तु - जितनी क्षति होनी थी, हो चुकी थी।

अब जब प्रकृति प्रतिघात कर रही है तो हमें वह कुदरती आपदा नज़र आ रही है (जो कुछ दिन बाद फिर भूल जायेंगे)। जब तक निगमानंद जैसे लोग गुमनामी में दम तोड़ते रहेंगे, गंगा यूं ही तांडव करती रहेगी

धरा और धारा का सम्मान हमने अब तक नहीं सीखा | वैसे कर लो जो भी करना है, कर्म-चक्र तो नदी भी चलाती है और खिलवाड़ का फल स्वयं देती है । साथ ही इस तथ्य से भी अवगत करा दूं की जिस दिन टिहरी में कुछ अमंगल हुआ (भूकंप या बाँध के आसपास भूस्खलन), ऋषिकेश और हरिद्वार इतिहास व् मिथक एक साथ बन जायेंगे - जलमग्न


सन्दर्भ : उत्तराखंड बाढ़, २०१३ 

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