अभी अगर अकस्मात् निगमानंद सरस्वती की बात करूं तो शायद कईयों को तर्कसंगत न लगे । ज्ञातव्य हो की यह वही निगमानंद सरस्वती (असली नाम स्वरूपम कुमार झा 'गिरीश') हैं जिन्होंने गंगा की लहरों का भान था और आमरण अनशन पर गए थे (कृपया इसे सीमित दिन के उपवास न पढ़े जो पिछले दो-तीन सालों से 'आमरण अनशन' के नाम पर होता रहा है ) । अवैध खनन, बालू माफिया, टिम्बर माफिया इत्यादि जो गंगा तथा इसके गर्भ-तट को क्षत-विक्षत करने पर लगे हुए थे, उनके खिलाफ नारा बुलंद किया था । यह भी बतलाता चलूँ कि यह फिर से वही निगमानंद हैं जिनकी (एक षड़यंत्र के तहत) उसी अस्पताल में मौत हुई जहाँ बाबा रामदेव का रामलीला प्रकरण के बाद इलाज चल रहा था । चूँकि उस वक़्त समस्त देश का ध्यान किसी और मुद्दे पर टिका था, निगमानंद का देहावसान एक गौण तथा अमुख्य घटना बन कर रह गयी और न ही बाद में किसी ने सूध ली । हालाँकि औपचारिक तौर पर कुछ अवैध खनन पर लगाम अवश्य लगाया गया । परन्तु - जितनी क्षति होनी थी, हो चुकी थी।
अब जब प्रकृति प्रतिघात कर रही है तो हमें वह कुदरती आपदा नज़र आ रही है (जो कुछ दिन बाद फिर भूल जायेंगे)। जब तक निगमानंद जैसे लोग गुमनामी में दम तोड़ते रहेंगे, गंगा यूं ही तांडव करती रहेगी ।
धरा और धारा का सम्मान हमने अब तक नहीं सीखा | वैसे कर लो जो भी करना है, कर्म-चक्र तो नदी भी चलाती है और खिलवाड़ का फल स्वयं देती है । साथ ही इस तथ्य से भी अवगत करा दूं की जिस दिन टिहरी में कुछ अमंगल हुआ (भूकंप या बाँध के आसपास भूस्खलन), ऋषिकेश और हरिद्वार इतिहास व् मिथक एक साथ बन जायेंगे - जलमग्न ।
सन्दर्भ : उत्तराखंड बाढ़, २०१३
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