आयुर्वेद का तमाशा
अवधारणा है कि यदि गंगाजल मैं पानी मिलाया जाए तो वह भी पानी हो जाता है, और इसके विपरीत अगर पानी में गंगाजल मिलाया जाए तो वह भी गंगाजल के समान ही है । ऐसी ही आध्यामिकता शायद सौन्दर्य प्रसाधन के बनियों ने भी अपनाया है जो पूरी तरह रासायनिक उत्पाद में एक रत्ती नीम या नीबू मिलाकर उसे पूर्ण रूप से 'हर्बल' घोषित कर देते है । और यह गोरखधंधा सभी बड़े उत्पादकों का है - चाहे वो हिमालया हो या बाबा रामदेव या कोई और। सामान्य ज्ञान भी यही कहता है कि जिसकी मात्रा ज्यादा हो तो गुण या नाम उसके ही माने जायेंगे । एक तसली पानी में एक बूँद दूध मिला देने से वह दूध नहीं हो जाता।
आयुर्वेद और 'हर्बल' शब्द अब बाजारी नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है ।
आयुर्वेद और 'हर्बल' शब्द अब बाजारी नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है ।
Labels: प्रकृति (Nature)

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